Thursday, 9 July 2020

True friendship and humble beginnings

The humble besan cheela is as dear to me as the first best friend in childhood. When I didn't even know how to prepare a chapati properly, I knew how to get my cheela right.
It gave me the confidence to try and perfect my art.

Whenever I prepare the cheela, I reflect at the culinary journey so far. Those days I couldn't even in my wildest dreams think of preparing the stuff that I prepare in a breeze today.

No matter how great we become, never forget the first friend who appreciated u for your humble beginnings.

This is the way I like my cheela....enjoying the bear hug to brown bread slices.

To true friendship and humble beginnings.








Tuesday, 7 July 2020

Mumbai ki wo pehli baarish

शायद बचपन में ही बारिश पसंद थी मुझे. बस. स्कूल से लौटकर अगर बारिश आ रही हो, तो खाना खाने से पहले बारिश में भीगना तो बनता ही था. अपने घर की हरी भरी बालकनी में मैं जमकर बारिश का मज़ा उठाती. क्यूंकि घर पहली मंज़िल पे था और मालती और चमेली की बेल काफी हद तक प्राइवेसी दिला देती थीं, मैं बारिश में ऐसे नाचती और नहाती की जैसे कोई देख न रहा हो! अंग्रेजी में कहते हैं न "dance like nobody is watching you" बस वैसे ही.

फिर पता नहीं कब बड़े हो गए.

जीवन में कितने सारे नियम बन गए. बालकनी से ज़्यादा देर तक नहीं झांकना. अच्छी लड़कियां ऐसे नहीं करती. सरे आम बारिश में नहीं नहा सकते. अच्छा नहीं लगता. और न जाने क्या क्या.

जैसे जैसे जीवन की व्यस्तता बढ़ती गयी, बारिश महज़ चाय पकोड़े लेकर बालकनी या खिड़की से बूंदों को देखने तक ही सीमित रह गयी. कभी कभी मैं और पतिदेव बारिश में लोधी गार्डन जाते सैर करने, और बेहद खुबसुरत अनुभव होता वह.

मुंबई ने इस सुखद अनुभव में भी ज़्यादा नमक डाल दिया.

मुंबई की वो पहली बारिश आज भी मुझे याद है...

मैं मुंबई कभी आना नहीं चाहती थी. दिल्ली ही मेरी सब कुछ थी. लेकिन जीवन इतना परिवर्तनशील और ज़िद्दी है की अक्सर जिस चीज़ से हम दूर भागते हैं, वही हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाती है.

खैर....मैं मुंबई आ ही गयी.

संयोग तो देखिये, हम मुंबई में जिस दिन आये उसके अगले दिन ही बारिश ने दस्तक दे दी. मानो हमारा स्वागत कर रही हो.

मुंबई की बारिश दिल्ली की बारिश से काफी अलग है. न बादल, न आंधी, न गर्जन. बस ये तो कहीं भी, कभी भी, कैसे भी शुरू हो जाती है. दिल्ली की बारिश कुछ मिनटों में शांत हो जाती है. लेकिन मुंबई तो ऐसे बरसता है, मानो किसी ने पानी का नल ही खोल दिया हो. आप रुकें भी तो कितना. इसलिए यहां के लोग बारिश में भी चलते रहते हैं. रेनकोट, छाता और जूतों के सहारे. मुंबई नहीं रूकती।

कुछ दिन तो सब ठीक चला. सामान दिल्ली से नहीं आया था तो पतिदेव रोज़ दफ्तर छोड़ देते और शाम को लेने भी आ जाते. पर एक सप्ताह बाद मेरी गाड़ी घर के सामान के साथ आ गईं. फिर तो मुझे एकेले ही दफ्तर जाना था.  सोचा, जब ओखली में सर दे दिया है दो मूसल से क्या डरना!

वो सुबह मैं भूल ही नहीं सकती.

अपनी गाड़ी से मैं दफ्तर के सामने वाली पार्किंग में उतरी. हाथ में फोल्ड हो जाने वाली एक प्यारी सी छतरी, दिल्ली से लिया हुआ मेरा अच्छा सा महंगा बैग, सुंदर सैंडल्स पहने जैसे ही मैं गाड़ी से उतरी और पार्किंग के निकास की तरफ बढ़ी की एकाएक झमाझम बारिश शुरू हो गयी. बचने का तो सवाल ही नहीं उठता था. खुली पार्किंग में ऐसी कोई जगह नहीं थी जहाँ मैं पांच मिनट सर छुपा सकती।  लेकिन रुकने का फायदा भी कहाँ था. बारिश कौनसी रुकने वाली थी और दफ्तर के लिए वैसे ही देर हो रही थी.

अब सोचती हूँ, शायद रुक ही जाती तो यह कड़वी याद न बनती.

मैंने छतरी खोली और चलना शुरू कर दिया. चार कदम भी नहीं चली थी की बारिश से मेरी छतरी पलट गयी (बाद में समझ आया की मुंबई वाले इतने बड़े बड़े छाते लेकर क्यों चलते हैं). हवा इतनी तेज़ थी की लाख कोशिश के बावजूद वो छतरी ठीक नहीं हुई. जब तक मैं कुछ सम्भलती, मैं बुरी तरह भीग चुकी थी. बारिश के पानी से बैग और जूतों को दूर रखना चाहिए. यहां तो मेरा बैग और सैंडल्स बारिश के पानी में डूब चुके थे. चश्मे से कुछ नहीं दिख रहा था क्यूंकि बारिश ने उसे भी नहीं छोड़ा.

उस दिन हिंदी  फिल्मों की हेरोइन की तरह मैं भी बारिश में खूब रोइ. बारिश की बूंदो में मेरे आंसू भी घुल गए. मुंबई आने के निर्णय के लिए कभी ईश्वर को कोसा,  कभी अपने पति को, और सबसे ज़्यादा स्वयं को. पर अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत!

आज मुंबई में रहते हुए ये मेरी छठी बारिश है. बारिश से मेरा नाता आज भी वैसा ही है. बस अब उतना रोना नहीं आता. बारिश के लिए बैग, जूते, कपड़े सब अलग होते हैं. बड़े बड़े छाते होते हैं.

बारिश से दोस्ती तो नहीं हुई, लेकिन इस दुश्मन से झूझना अब सीख लिया है. क्यूंकि मुंबई में रहना है तो बारिश का डटके सामना तो करना ही पड़ेगा.

पर मुंबई की वो सुबह, वो बारिश और वो आंसू मैं कभी नहीं भूल सकती.


Tuesday, 19 May 2020

It is so good to be BACK

Like a typical script writer looking for perfection, I type, delete, retype and delete again! 

That's what happens when you are writing after ages. By writing, I mean the traditional long form writing, not Facebook posts ( I actually met someone at an event once who said he too is a blogger. When I asked for his blog address, he said "Oh I blog on Facebook!!! Lol!)

There is so much to write and I don't know where to begin. 

Thanks to the lockdown, my mind which had been tuned to work like a pendulum, yearned for some solace from the soul. The good old friend blogging was terribly missed.

I began blogging with so much zing sometime in 2012 while pursuing MBA. Not a day went by when I didn't check my blog multiple times a day and posted almost daily. 

I can relate this to the relationship between two lovers. They meet, they click. Then passion takes over in such a big way that they are inseparable. As time passes, the passionate flames do get subsided to some extent. But not love. Whether times are good or bad, it is each other the lovers look forward to for sharing their feelings. And time spent becomes an irrelevant factor. 

Such is relationship between me and my blog. 

I had never ever imagined a day would come when my posting frequency would drop down to 2 posts a year (2019). 

But, being a working mom changes everything beyond one's imagination. 

However, I am glad I returned before an year. As they say "subah ka bhoola shaam ko waapis aa gaya!)

I remember when my blogging frequency dropped due to motherhood, I would often complain to Mr. Hubby that all these blogging ideas accumulating in my mind are choking me and I need time to vent it out on my blog. He would smile and say "it is better to have ideas even if you cant blog than having no ideas at all!"

Then one day, the ideas too died. 

I forgot that I was once a blogger. When people asked me about my blog, I would give a shy smile and make excuses or in better words, try to justify my absence. People understood and slowly they too stopped asking.

Then few days ago, my niece messaged me that she is starting a blog and wanted me to review and give my feedback. The fact that she had been in so much awe of my blogging and considered me her inspiration jolted the blogger inside me and I decided to blog again.

It wasn't easy due to a plethora of things in my to do list everyday. 

But the sheer thought of blogging again did something great to me. 

The ideas came back to my mind. I would be feeding the kids and my mind would say "yay we can blog about this and that and yap yap yap!"

Finally when the bucket began to overflow I decided to open my Macbook which had not seen light of the day since 7-8 months. 

And it is so good to be back. Like hugging my bestie after ages. 

Hope to be regular with blogging now on...for nothing should come between us and our me time!a